Famous Surdas Ke Dohe | सूरदास जी के दोहे अर्थ सहित


Famous Surdas Ke Dohe | सूरदास जी के दोहे अर्थ सहित, नमस्कार दोस्तों स्वागत है आप सभी का एक बार फिर हमारी Website Be RoBoCo में, आज एक बार हम फिर हाजिर हैं आपके लिए एक महत्वपूर्ण जानकारी को लेकर जिसे हम Famous Surdas Ke Dohe | सूरदास जी के दोहे अर्थ सहित के नाम से जानते हैं।


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सूरदास जी की कृष्ण भक्ति के दोहे के बारे में आज कौन नहीं जानता है। सूरदास एक ऐसा नाम है जिसको किसी भी प्रकार के परिचय की आवश्यकता नहीं है लेकिन फिर भी आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि सूरदास भारत के 16वीं सदी के कवि और संत थे। उन्हे उनकी रचनाओं में अपनी सरल भाषा और भक्ति शैली के लिए जाना जाता है। 


अगर आप सूरदास जी के प्रसिद्ध दोहों को अर्थ सहित पढ़ना चाहते है तो आप बिल्कुल सही जगह आ गए हैं। लेख के अंत तक बने रहे, आपको सूरदास जी के दोहे से जुड़ी पूरी जानकारी मिलेगी, चलिए शुरू करते है।

 

Table of Contents

Famous Surdas Ke Dohe | सूरदास जी के दोहे अर्थ सहित


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भगवान श्री कृष्ण के उपासक और सर्वश्रेष्ठ कवि सूरदास को हिंदी साहित्य का सूर्य माना जाता है। सूरदास जी आम तौर पर अपनी रचनाएं ब्रजभाषा में लिखते थे। सम्राट अकबर और महाराणा प्रताप जैसे योद्धा भी सूरदास जी से काफी प्रभावित थे। आइए ऐसे महान कवि के जीवन के बारे में थोड़ी जानकारी हासिल करते है। 

 

Surdas Kaun The (सूरदास कौन थे)

 

सूरदास भक्तिकाल की कृष्णभक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि हैं। उन्हें कृष्ण को समर्पित उनकी भक्ति और कविता के लिए जाना जाता है। इनका जन्म 1478 या 1483 (विवादास्पद) में रुनकता नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता रामदास सारस्वत ब्राह्मण थे। 18 वर्ष की उम्र में इन्हें संसार से विरक्ति हो गयी थी और वे गऊघाट पर रहने लगे।

 

 इसी दौरान सूरदास को वल्लभ आचार्य की शिक्षाओं से प्रेरणा प्राप्त हुई और वे वात्सल्य की भक्ति भावना से कृष्ण भक्ति में लीन हो गए। कृष्ण के सम्मान में कविता की रचना करने लगे। कहा जाता है कि उन्होंने अपने जीवनकाल में 10,000 से अधिक छंदों की रचना की थी। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना भक्ति कविता "सूरसागर" है, जिसमें कृष्ण को समर्पित लगभग एक लाख पद हैं।

 

इसके अलावा सूरदास जी ने सूर सारावली और साहित्य लहरी की भी रचना की। सूरदास भारतीय उपमहाद्वीप में बढ़ते भक्ति आंदोलन का एक हिस्सा थे। यह आंदोलन जनता के आध्यात्मिक सशक्तीकरण का प्रतिनिधित्व करता है। इनका निधन सन 1579 या 1584 (विवादास्पद) में पारसोली में हो गया।

 

सूरदास जी एक जन्मांध हिंदू धार्मिक कवि और गायक थे। इसके बारे में भी इतिहासकारों के बीच मतभेद है। कुछ लोग मानते हैं कि राधा कृष्ण के रूप और सौंदर्य का सजीव वर्णन करने व सूक्ष्म पर्यवेक्षणशीलता के कारण, संभवतः सूरदास जन्मांध नहीं थे, हो सकता है बाद में किसी कारणवश अंधे हो गए हो।

 

Surdas Ke Dohe In Hindi

 

सूरदास जी को हिंदू संत के रूप में पूजते हैं और उनकी कविता आज भी लोगो के बीच लोकप्रिय है। इनके पदों में लक्षणा और व्यंजना शब्द शक्तियों का प्रयोग मिलता है। हालाँकि सूरदास सदियों पहले जीवित थे, लेकिन उनकी कविताएँ आज भी लोकप्रिय हैं। वे उन लोगों के साथ प्रतिध्वनित होती रहती हैं जो जीवन में गहरे अर्थ की खोज कर रहे हैं। इनके दोहों के बारे में जानने से पहले इनकी काव्यरचना के भावो के बारे में जान लेते है। इनकी काव्यरचना के 3 पक्ष हैं।

 

1. विनय - इनके विनय सम्बंधी पदों में दास भाव की भक्ति है। इनमें आत्मदीनता, जीवन की तुच्छता, संसार की नश्वरता आदि का वर्णन है।

 

2. बाल लील वर्णन - बालक के मन की हर अंतर्दशा व भावना का सूरदास ने विस्तृत चित्रण किया और वात्सल्य भाव को रस दशा के चरम तक पहुँचाया

 

3. श्रृंगार चित्रण - श्रृंगार रस के संयोग और वियोग पक्षों का सूरदास ने बारीक और गहरा चित्रण किया है जैसे सूरसागर के 'भ्रमरगीत' आदि।

 

इनकी प्रसिद्ध कृति सूर सागर को तीन खंडों में विभाजित किया गया है, जिनमें से प्रत्येक में एक अलग प्रकार की कविता है। पहले खंड में प्रेम और भक्ति के गीत हैं, दूसरे खंड में कृष्ण के बचपन के कारनामों के बारे में कविताएं हैं, और तीसरे खंड में राक्षस राजा कंस के साथ कृष्ण की लड़ाई के बारे में कविताएं हैं।

 

Surdas Ke Guru Kaun The?

 

सूरदास जी के अंदर पद रचना व संगीत की प्रतिभा लड़कपन से थी। संसार से विरक्ति के बाद जब इनमें भगवद् अनुरक्ति हुई तो वल्लभाचार्य का शिष्य बनने पर इन्होंने कृष्णलीलाओं का गान किया।

 

सूरदास जी की कविताएँ कृष्ण के बारे में लिखी गई अब तक की सबसे सुंदर और चलती-फिरती कविताएँ हैं। वे उसके दिव्य स्वभाव और मानवता के प्रति उसके प्रेम के सार को पकड़ लेते हैं।

 

Surdas Poems In Hindi

 

सूरदास की कविता इसकी सरल, सुंदर, सुसज्जित भाषा द्वारा चिह्नित है। वह अक्सर अपने आध्यात्मिक संदेशों को स्पष्ट करने के लिए रोजमर्रा की छवियों और वस्तुओं का उपयोग करता है। उदाहरण के लिए, उन्होंने अपनी सबसे प्रसिद्ध कविताओं में से एक में कृष्ण की तुलना एक नीले कमल के फूल से की है। एक अन्य कविता में, उन्होंने कृष्ण और उनके भक्तों के बीच के प्रेम की तुलना एक माँ और उसके बच्चे के बीच के रिश्ते से की है।

 

1. अब हों नाच्यौ बहुत गोपाल 

 

अब हों नाच्यौ बहुत गोपाल।

काम क्रोध कौ पहिरि चोलना, कंठ विषय की माल॥

महामोह के नूपुर बाजत, निन्दा सब्द रसाल।

भरम भरयौ मन भयौ पखावज, चलत कुसंगति चाल॥

तृसना नाद करति घट अन्तर, नानाविध दै ताल।

माया कौ कटि फैंटा बांध्यो, लोभ तिलक दियो भाल॥

कोटिक कला काछि दिखराई, जल थल सुधि नहिं काल।

सूरदास की सबै अविद्या, दूरि करौ नंदलाल॥

 

भावार्थ - निर्जीव संसार में भटकते हुए एक जीव अंत में भगवान से कहता है, मैंने आपके आदेश पर बहुत नृत्य किया।  अब मुझको इस प्रवृत्ति से छुटकारा दे दो। मेरी सारी अज्ञानता को दूर करो। मैने आपको रिझाने के लिए काम और क्रोध के वस्त्र पहनें। अज्ञानता के घुंघरू बजाए। निन्दा का मधुर गीत गाया। मोहित मन ने मृदंग का काम दिया। तृष्णा ने अपनी आवाज भर दी और ताल दे दी। माया की मुट्ठी कस ली।  उनके माथे पर लालच का तिलक लगाया गया था। न जाने ऐसे ही कितने ही बहाने बना डाले तुझे लुभाने के लिए। कहां कहां नाच किया, किस किस योनि में चक्कर लगाया, अब न जगह की याद है, न समय की। किसी तरह अब रीझ जाओ, नंदनंदन

 

Surdas Ke Pad In Hindi

 

सूरदास मध्यकाल के एक महान हिंदी कवि थे। वह तुलसीदास के समकालीन थे और अपने समय में बहुत लोकप्रिय थे।  उनकी कविता की विशेषता उनकी सरल और स्वाभाविक शैली है। उन्हें उनकी भक्ति कविताओं के लिए जाना जाता है, जो भावनाओं से भरी होती हैं। उनकी कई कविताएँ संगीत पर आधारित हैं और आज भी लोकप्रिय हैं।

 

2. उधो, मन न भए दस बीस।

 

एक बार श्रीकृष्ण जी जब अपने गुरु संदीपन के पास मथुरा में ज्ञानार्जन के लिए गए थे और वहाँ उनका उद्धव नाम का मित्र था। उद्धव विरक्तियुक्त निर्गुण ब्रह्म और योग की बातें करते रहते थे। श्रीकृष्ण ने सोचा केवल रीति, नीति और ब्रह्मज्ञान से तो संसार चलेगा नहीं, इसके लिए विरह और प्रेम की आवश्यकता भी है। इसलिए उन्होन उद्धव को एक संदेश लेकर ब्रज जाने के लिए कहा क्योंकि एक ओर उन्हें ब्रज की बहुत याद आती थी तो दूसरी ओर उन्होंने सोचा की गोपियाँ उद्धव को प्रेम का पाठ भी पढ़ा देंगी। 

 

उद्धव ने सोचा की विरह में तप रही गोपियों को वे निर्गुण ब्रह्म के प्रेम की शिक्षा देकर उनके सांसारिक प्रेम की पीड़ा से मुक्ति दिला देंगे। इसी उद्देश्य से जब उद्धव गोकुल पहुँचे तो उनके और गोपियों के बीच हुए वार्तालाप का एक अंश यह पद है।

 

उधो, मन न भए दस बीस।

एक हुतो था सो गयौ स्याम संग, को कैसे अवराधै आराधना करें ईस॥

सिथिल भईं हो गयीं सबहीं माधौ बिनु जथा जैसे देह बिनु सीस सर।

स्वासा अटकिरही आसा लगि, जीवहिं जिएँगे कोटि बरीस वर्ष॥

तुम तौ सखा स्यामसुन्दर के, सकल जोग योग के ईस।

सूरदास, रसिकन की बतियां पुरवौ इच्छा पूरी करें मन जगदीस॥

 

भावार्थ - गोकुल पहुँच कर उद्धव गोपियों को समाधि लगाकर निराकार ब्रह्म का ध्यान करने का उपदेश देते हैं। इसके उत्तर में गोपियाँ कहती हैं की उनके पास दस बीस मन तो हैं नहीं, केवल एक ही था और वह भी श्याम के साथ मथुरा चला गया। अब वे किस मन से उपासना करें? माधव यानी श्रीकृष्ण के बिना उनकी इंद्रियाँ शिथिल, स्थिर हो गयी हैं जैसे बिना शीश के शरीर। वियोग में साँस अटकाए, उनके दर्शन की आशा गोपियों को करोड़ों वर्ष जीवित रखेगी। वे उद्धव को सम्बोधित करती हैं - तुम तो श्याम के मित्र हो, योग के पूर्ण ज्ञाता हो। अर्थात उद्धव से यह अपेक्षित है की वे सब बातों के ज्ञानी होने के कारण गोपियों का विरह समझ ही सकते हैं। इनकी ऐसी दशा देखकर सूरदास कहते हैं की भगवान आप इन गोपियों के मन की इच्छा पूर्ण करें और इनसे मिलें।

 

Surdas Ke Dohe In Hindi With Meaning

 

सूरदास अपने समय के महान कवि थे। वह अपने सुंदर और काव्य कार्यों के लिए जाने जाते थे। वह प्रकृति के प्रति अपने महान प्रेम के लिए भी जाने जाते थे। वह अक्सर जंगल में लंबी सैर पर जाते थे और घंटों कविताओ का सृजन करते थे। वह एक बहुत ही प्रतिभाशाली कवि थे और उनकी रचनाओं को आज भी बहुत से लोग पसंद करते हैं।

 

3. गुरू बिनु ऐसी कौन करै।

 

गुरू बिनु ऐसी कौन करै।

माला-तिलक मनोहर बाना, लै सिर छत्र धरै।

भवसागर तै बूडत राखै, दीपक हाथ धरै।

सूर स्याम गुरू ऐसौ समरथ, छिन मैं ले उधरे। 

 

भावार्थ सूरदास जी कहते हैं कि बिना गुरु के शिष्यों पर ऐसी कृपा कौन कर सकता है कि वे गले में हार और सिर पर तिलक लगाते हैं। ऊपर छत्र होने के कारण उनका रूप बेहद आकर्षक हो जाता है। अपने शिष्य को संसार-सागर में डूबने से बचाने के लिए वह उनके हाथ में ज्ञान का दीपक देता है।  ऐसे गुरु पर बलिहारी जाते हुए सूरदास जी कहते हैं कि हमारे गुरु श्रीकृष्ण के इतने काबिल हैं कि उन्होंने पल भर में मुझे इस संसार-सागर से पार कर दिया।

 

Surdas Ki Kavita

 

सूरदास ने कृष्ण को संसार का तारणहार मानते हुए अपने आप को इस संसार के कष्ट से मुक्ति दिलाने की करुण प्रार्थना की है। अपनी करूण दशा को बताकर उनसे रक्षा की प्रार्थना की है। अग्रलिखित पद में सूरदास जी ने भगवान् श्री कृष्ण की शयनावस्था का सुंदर चित्रण किया है।

 

4. जसोदा हरि पालनैं झुलावै।

 

जसोदा हरि पालनैं झुलावै।

हलरावै दुलरावै मल्हावै जोइ सोइ कछु गावै॥

मेरे लाल को आउ निंदरिया काहें न आनि सुवावै।

तू काहै नहिं बेगहिं आवै तोकौं कान्ह बुलावै॥

कबहुं पलक हरि मूंदि लेत हैं कबहुं अधर फरकावैं।

सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि करि करि सैन बतावै॥

इहि अंतर अकुलाइ उठे हरि जसुमति मधुरैं गावै।

जो सुख सूर अमर मुनि दुरलभ सो नंद भामिनि पावै॥

 

भावार्थ - उपरोक्त पंक्तियों में सूरदास जी ने वर्णन किया है कि  मैया यशोदा श्रीकृष्ण को पालने में झुला रही हैं। कभी वह पालने को हल्का-सा हिला देती हैं, कभी कन्हैया को प्यार करने लगती हैं और कभी मुख चूमने लगती हैं। ऐसा करते हुए वह जो मन में आता है वही गुनगुनाने भी लगती हैं। लेकिन कन्हैया को तब भी नींद नहीं आती है। इसीलिए यशोदा नींद को उलाहना देती हैं कि अरी निंदिया तू आकर मेरे लाल को सुलाती क्यों नहीं? तू शीघ्रता से क्यों नहीं आती? देख, तुझे कान्हा बुलाता है। जब यशोदा निंदिया को उलाहना देती हैं तब श्रीकृष्ण कभी पलकें मूंद लेते हैं और कभी होंठों को फड़काते हैं। जब कन्हैया ने नयन मूंदे तब यशोदा ने समझा कि अब तो कान्हा सो ही गया है। तभी कुछ गोपियां वहां आई। गोपियों को देखकर यशोदा उन्हें संकेत से शांत रहने को कहती हैं। इसी अंतराल में श्रीकृष्ण पुन: कुनमुनाकर जाग गए। तब यशोदा उन्हें सुलाने के उद्देश्य से पुन: मधुर-मधुर लोरियां गाने लगीं। अंत में सूरदास नंद पत्‍‌नी यशोदा के भाग्य की सराहना करते हुए कहते हैं कि सचमुच ही यशोदा बड़भागिनी हैं। क्योंकि ऐसा सुख तो देवताओं व ऋषि-मुनियों को भी दुर्लभ है।

 

Surdas Ji Ke Bhajan 

 

भक्त सूरदास की रचनाएं कृष्ण प्रेम से परिपूर्ण है। उनकी  रचनाओं में कृष्ण प्रेम का इतना मनोहर वर्णन किया है कि सुनने वाला मंत्रमुग्ध हो जाए। इस पद के अंदर सूरदास ने श्रीकृष्ण के वाक्चातुर्य का वर्णन किया है कि अपने घर पर माखन की चोरी करते हुए यशोदा मां के द्वारा पकड़े जाने पर उन्होने स्थिति को किस प्रकार संभाला है। इतना सुंदर वर्णन कही अन्यत्र नहीं मिलता।

 

5. मैया! मैं नहिं माखन खायो।

 

मैया! मैं नहिं माखन खायो।

ख्याल परै ये सखा सबै मिलि मेरैं मुख लपटायो॥

देखि तुही छींके पर भाजन ऊंचे धरि लटकायो।

हौं जु कहत नान्हें कर अपने मैं कैसें करि पायो॥

मुख दधि पोंछि बुद्धि इक कीन्हीं दोना पीठि दुरायो।

डारि सांटि मुसुकाइ जशोदा स्यामहिं कंठ लगायो॥

बाल बिनोद मोद मन मोह्यो भक्ति प्राप दिखायो।

सूरदास जसुमति को यह सुख सिव बिरंचि नहिं पायो॥

 

भावार्थ - जब यशोदा ने देख लिया कि कान्हा ने माखन खाया है तो पूछ ही लिया कि क्यों रे कान्हा! तूने माखन खाया है क्या? तब कन्हैया बोले मैया! मैंने माखन नहीं खाया है। मुझे तो ऐसा लगता है कि इन ग्वाल-बालों ने ही बलात् मेरे मुख पर माखन लगा दिया है। फिर बोले कि मैया तू ही सोच, तूने यह छींका कितना ऊंचा लटका रखा है और मेरे हाथ कितने छोटे-छोटे हैं। इन छोटे हाथों से मैं कैसे छींके को उतार सकता हूँ। कन्हैया ने मुख से लिपटा माखन पोंछा और एक दोना जिसमें माखन बचा रह गया था उसे पीछे छिपा लिया। कन्हैया की इस चतुराई को देखकर यशोदा मन ही मन मुस्कराने लगीं और छड़ी फेंककर कन्हैया को गले से लगा लिया। सूरदास कहते हैं कि यशोदा को जिस सुख की प्राप्ति हुई वह सुख शिव व ब्रह्मा को भी दुर्लभ है।

 

Famous Surdas Ke Dohe

 

अग्र लिखित दोहे के माध्यम से सूरदास जी ने समझाया है कि किस प्रकार भक्तों का अपने भगवान के ऊपर विश्वास उसको इस संसार रूपी सागर से मुक्ति दिला सकता है। अपनी रक्षा के लिए आपको कृष्ण की कृपा, करूणा पर अनन्य विश्वास होना चाहिए। यही वह मार्ग है जिस पर वह अपने आराध्य की अंगुली पकड़ कर अपने लक्ष्य को हासिल कर सकता है।

 

6. अबकै राखि लेहु भगवान।

 

अबकै राखि लेहु भगवान।

हौं अनाथ बैठ्यो द्रुम डरिया पारिधि साधे बान।

ताके डर मै भाज्यो चाहत उपर ढुक्यो सचान।

दुहूं भांति दुख भयो आनि यह कौन उबारे प्रान।।

 

भावार्थ - सूरदास जी कहते है कि भक्त अपने स्वामी से अपनी दीनता बताते हुए कह रहा है कि हे परमेश्वर! अब तो मेरी रक्षा कीजिये। इस संसार में मैं ऐसा उलझ गया हूँ जैसे एक पक्षी। ऐसा पक्षी जिसके ऊपर बाज मंडरा रहा है और नीचे बहेलिया बाण संधान करने के लिए तैयार खड़ा है।

 

सूरदास जी ने कृष्ण के चरित्र का बहुत ही सजीव वर्णन करते हुए कहा है कि है कि श्री कृष्ण का इतना प्रताप है कि लंगड़ा व्यक्ति भी पर्वत को लांघ जाता है, अंधे को सब कुछ दिखने लगता है, बहरा सुनने और गूंगा बोलने लगता है। इतना ही नहीं युगों युगों का दरिद्र राजक्षत्र धारण करके चलने लगता है।

 

Soor Ke Pad

 

सूरदास का अपने आराध्य श्री कृष्ण के ऊपर इतना विश्वास था कि उन्होंने जन्मांध होने के बावजूद भी उनके क्रीड़ाओ का सजल वर्णन किया है। उपरोक्त पद में उन्होंने जब राधा के प्रथम मिलन का वर्णन किया है।

 

7. बुझत स्याम कौन तू गोरी

 

बुझत स्याम कौन तू गोरी। कहां रहति काकी है

बेटी देखी नही कहूं ब्रज खोरी ।।

काहे को हम ब्रजतन आवति खेलति रहहि आपनी पौरी ।

सुनत रहति स्त्रवननि नंद ढोटा करत फिरत माखन दधि चोरी।।

तुम्हरो कहा चोरी हम लैहैं खेलन चलौ संग मिलि जोरी ।

सूरदास प्रभु रसिक सिरोमनि बातनि भूरइ राधिका भोरी ।।

 

भावार्थ - सूरदास जी कहते हैं कि राधा जी को देख कर श्रीकृष्ण ने पूछा कि हे गोरी! तुम कौन हो? कहां रहती हो? किसकी पुत्री हो? हमने पहले कभी ब्रज की इन गलियों में तुम्हें नहीं देखा। तुम हमारे इस ब्रज में क्यों चली आई? अपने ही घर के आंगन में खेलती रहतीं। इतना सुनकर राधा बोली, मैं सुना करती थी कि नंदजी का लड़का माखन की चोरी करता फिरता है। तब कृष्ण बोले, लेकिन तुम्हारा हम क्या चुरा लेंगे। अच्छा, हम मिलजुलकर खेलते हैं। सूरदास कहते हैं कि इस प्रकार रसिक कृष्ण ने बातों ही बातों में भोली-भाली राधा को भरमा दिया।

 

Surdas Ke Dohe FAQs

 

सूरदास को किस रस का सम्राट कहा जाता है?

 

महाकवि सूरदास को वात्सल्य रस का सम्राट कहा जाता है यद्यपि उन्होंने श्रृंगार रस की भी राधा - कृष्ण की बहुत सी खूबसूरत रचनायें लिखी और गाई हैं।

 

सूरदास की रचनाएं कौन सी भाषा में हैं?

 

सूरदास की रचनाएं "ब्रजभाषा" में हैं।

 

सूरदास की रचनाएं कौन-कौन सी हैं?

 

सूरदास की रचनाएं निम्न है।

 

1. सूरसागर - जो सूरदास की प्रसिद्ध रचना है। जिसमें सवा लाख पद संग्रहित थे। किंतु अब सात-आठ हजार पद ही मिलते है।

2. सूरसारावली

3. साहित्य-लहरी - जिसमें उनके कूट पद संकलित हैं।

4. नल-दमयन्ती

5. ब्याहलो

 

आपने क्या सीखा

 

उपरोक्त लेख Famous Surdas Ke Dohe | सूरदास जी के दोहे अर्थ सहित के माध्यम से मैंने आपको Surdas Ke Dohe In Hindi, Surdas Poems In Hindi, Surdas Ke Dohe In Hindi With Meaning और  Surdas Ke Pad In Hindi, Surdas Ke Guru Kaun The, Surdas Ki Kavita, Surdas Ji Ke Bhajan और Soor Ke Pad आदि के बारे में बताया है।

 

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Gaurav Sahu
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